"A bi-lingual platform to express free ideas, thoughts and opinions generated from an alert and thoughtful mind."

Sunday, January 10, 2010

ठंडी की रातों में !



ठंडी की कपकपाती रातों में
पास है बस एक पतली चादर
वो भी आधी फटी हुई
हसो या रोऊ, है यह क्या बात सही?

नींद तोह हो गयी खफा
जैसे ही सितारे ने बांधा यह समां
तारो में ढूंढ़ रहा था अपना जहाँ
क्यूँ हो गयी है खुशिया मुझसे यहाँ वहां!

रोज़ एक ही बात सोचता हू
शायद अपने मन को यूँ ही बहला लेता हू
एक दिन आएगा, जब ऐसी ही ठंडी रातों में
मौका मिलेगा, सुकून से सो जाने का
चाँद की बाहों में
सितारों की राहों में
धूप खिलेगी मीठी सी
लिए सपनो को संग
समेटे उसकी गर्मी, चांदनी की तन्हाई में!

येही सोच सोच कर, बिताता हू हर रात
खुलती है आँख तोह छिप जाती है रात!

Related Posts :



2 comments:

Saro said...

Hey Rachana,

I have no idea what you're writing cz I can't really read hindi! But I love the lay out and well, the topics sound interesting if not revolutionary.

Thank you for not writing about just love and flowery things!

Rachana said...

Hi Saro,

Thanx for stopping by my blog.

For readers like you who can't read devnagari scrip, I will be using English fonts as well.

Hope you read and enjoy my poems.

Regards,
Rachana

Post a Comment