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Wednesday, January 13, 2010

कर निश्चय लिए खुशियों की गूँज



हर तरफ है खुशियों की गूँज

खुशिया बता रही है त्योहारों की धूम

धूम का ऐसा चदा है रंग

रंग में नाचे हो के सब मगन

मगन बिना कोई सिलवट और शिकन

शिकन भगा, सुन सखा, आखिर कुछ समय तो मिला

अमृत रस पान चखने का

खीर में गिरे मखाने का

सुरों से सुरों को मिलाने का

नाचने का और नचाने का



बाधा लो हाथ, हो जाओ साथ

इस पवित्र आग में जला दो कुछ आज

यह झूठा लालच का पर्दा

क्यूँ होता दर्द इतना गहरा

यह मैं की भावना

जिसने कभी दी नहीं किसी को भी सान्तवना

क्यूँ सोचे तू अपने और पराये

जीवन जाए हर कोई पछताए

तोड़ दे यह गुस्से की दीवार

क्यूँ बह रही जलन की बयार

दया तूने जो दिखाई थी झूठी

ढूंढ़ ले अपने डर की बूटी

कंजूसी भी है एक बुराई

जिसने बनाया तुझे निर्दयी कसाई

राह जो तू अपनी भूला

बुझ गया जो जल रहा था चूल्हा!


जला दो सब आज

आ रही तेरे भीतर से आवाज़

बजाओ अब तो निश्चय की बीन

जो सुनाई दे हर रैन!

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