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Sunday, January 10, 2010

शिक्षा: विश्वास का दीया





विश्वास का दीया

अब बुझने ना पाये!

देखे थे जो खवाब

वो धुंधला ना जाये !



सपने में जो आई थी नन्ही कली

वो आखिर क्यूँ नहीं खिली ?

जवाब देना होगा सबको

ज़िम्मेदार बनना होगा आपको !



क्यूँ छुटी कमला की पदाई

वह वापिस घर क्यूँ चली आई ?

कर दो सगाई , कहे उसकी ताई

किसी ने पुछा तक नहीं क्या यह तेरे मन को भाई !



भेज ससुराल क्या सुख की नींद पाएंगे

जब वहां बेटी को सौ दुःख सतायेंगे

अशिक्षा है दुखों का मूल

कैसे गए आप सब भूल !



क्या एक अनपद माँ अपने बच्चे को पढ़ा पायेगी

उसे परिवर्तन से झुझना सिखा पायेगी

पहले बेटी को तोह पढाओ

फिर उसकी दुनिया भी बसाओ !



ख़ुशी किसी की जागीर नहीं

यह सबकी ज़िन्दगी में ही बसी

ढूंढ़ लो तोह मिलेगी येही कही

बोलो बात यह कैसी रही !


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