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Monday, January 11, 2010

क्या टूटेगी यह दीवार?

क्या है तेरी जात
तू किसकी है औलाद
क्या है तेरा धर्म
क्या तू जाने अपना कर्म?

क्यूँ नहीं आई तुझे शर्म?
जब खेलते-खेलते तू गया गली के उस पार
हाथ बढ़ा तूने किया उसे इतना दुलार
क्यूँ मिटाई तूने यह लकीर
जिस पर खड़ा था वो फ़कीर!

दरवाज़े तो थे अपने सटे -सटे
जिस पार उमीदे के गले घुटे
तूने क्यूँ इनमे आज दस्तक दी
कुचलती उमीदो को
राहत की कुछ साँसे दी !

कैसे लगा तुझे तू कुछ कर जायेगा
कागज़ के फूल यूँ ही खिला पायेगा
बदलाव है यह ना आसन
लगानी होगी तुझे जान
रखना सबका सम्मान
तभी कर पायेगा तू अपने मन का काम!

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