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Tuesday, January 12, 2010

मेरे जूते !



यह मेरे जूते

जिनके बिना लगे मुझे सारा जग छुते

अनगिनत गलियों से गुज़रे यह

ऊंची नीची पग्दंदियो पर चले यह!


इनको मालूम मैं कितना थकी

यह जाने मैं कहा-कहा रुकी

इनके पास है मुझे लगी ठोकरों का हिसाब

इन्होने देखा जब मैं रोई बेहिसाब!

निकली जब मैं अपना मकसद हाथ

था नहीं कुछ मेरे साथ!


बन कर हमराही

चले यह बहुत दूर

ना जाने क्या है अपना रास्ता

फिर भी चले यह मस्ती में हो के चूर!

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