कविता मेरी सहेली
येही तो है मेरी सविता!
सोच के गहरे सागर से,
निकाल मैं भावना भरे मोतियों को,
शब्दों की माला में मैं कुछ इस तरह गुथू ,
तुझमे नवीनता का संचार करू!
तू मेरी सखी
तू ही सच्ची साथी
तुझमे ही मैं अपने आप को पाती!
मेरे ह्रदय की भावना का तू ही दर्पण
तुझमे ही मेरा सर्वस्व अर्पण
दिखे तुझमे मुझे मेरा अक्स
ऐसा है नहीं और कोई दूसरा शख्स!
बन के गीत, तू बनी लय, ताल और मेरा संगीत
अब क्या कहू, तू ही जीने की नयी आस और मन का मीत
क्षय कर अज्ञानता का तम
तू मेरी वाणी का आधार बनी
बिठा कल्पना के हिंडोले में
तू मुझे ले जाए और कही!
इसलिए, हे कविता मेरी सहेली
तू ही मेरी सविता!
KAvita Meri Saheli!
Kavita meri saheli
Yehi toh hai meri savita!
Soch ke gehre sagar se,
Nikal main bhavna bhare motiyo ko,
Sabdo ki mala mein main kuch is tarah ghuthu,
Tujhme naveenta ka sanchar karu!
Tu meri sakhi
Tu hi sachi sathi
Tujhme hi main apne aap to paati!
Mere hriday ki bhavna ka tu hi darpan
Tujhme hi mera sarvasv arpan
Dikhe tujhme mujhe mera aks
Aisa hai nahi aur koi dusra shaksh!
Ban ke geet, tu bani lay, taal aur mera sangeet
Ab kya kahu, tu hi jeene ki nayi aas aur man ka meet
kshaya kar agayanata ka tam
Tu meri vani ka aadhar bani
Bitha kalpana ke hindole mein
Tu mujhe le jaaye aur kahi!
Isliye, hey kavita meri saheli
Tu hi meri savita!
2 comments:
काफी अच्छी कविता लिखी है अपने, सच मैं बहुत सुन्दर.. इस तरह क और लिखिए मुझे बे सबरी से इंतजार रहेगा.. आपका..
शुभचिंतक
thank you for appreciation...will definitely more such poems...
Rachana:-)
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