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Friday, January 15, 2010

ना जाने क्या हुआ?



तारों की भीड़ में
क्यूँ खो गया एक नन्हा तारा
लहरों के इस समंदर में
क्यूँ पिछड़ गया एक बिचारा किनारा

फूलो के इस बाग़ में
कैसे सोता रह गया एक मासूम भौरा
रंगों की इस रंगीली दुनिया में
कैसे ना भीग पाया मेरा ही दुपट्टा कोरा

सपनो की दौड़ में
क्यूँ छूटी भावना भरी उम्मीद की किरण
बारिश तोह हर जगह नहीं हुए
फिर आई मुझको ही क्यूँ सिरहन

नयनो की रौशनी में
ना जाने, मैं ही क्यूँ चोंधी
हवा क्यूँ चले इतनी तीखी
खो गयी जाने कहाँ मिट्टी की खुशबू सोंधी!

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