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Wednesday, January 6, 2010

नयी दुल्हन




कल तक थी जो अनजानी
पगली, मनभावन थी जो बेगानी
आज बनाना है उसे एक नयी दुल्हन !

सर पर उम्मीदों की चुनरी
सांसें चले मद्धम, बजने लगे क्यूँ पाँव की मुंदरी
आँखों में नए जीवल की है चमक
जैसे हवा में घुल रही मीठी सी महक !

हाथों के कंगन करे क्या है इशारे
हाथ थम तैयार कड़ी है खुशिया द्वार तिहारे
कानो की बाली भी हिले है होले
कुछ देर रुको, हो रहा मन मेरा भी कुछ बोले !

पायल की खनक का यह कैसा है शोर
बहार खड़ा, स्वागत में कोई चित चोर
गजरा, कजरा, भी है मद में चूर
क्यूँ न हो, हो रही है, जीवन में नयी भोर !

अब क्या सोचे, मुठिया क्यूँ भिचे
छोड़ दर, कड़ी क्यूँ तू अंखियाँ मीचे
नया दिन, नयी उम्मीद और एक नया विश्वास
बस गया तेरे स्वाश
खीश आस की डोर
क्यूंकि मन में नाचे मोर
अब रोये क्या होत
बनी है तू नयी दुल्हन
छायी खुशिया चाऊ और !

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