मैं एक बीज हूँ!
मुझ पर ही हरियाली की ज़िम्मेदारी है
युग-युगांतर तक
मैं ही जीवन चला रही हूँ!
जीवन किसका?
उनका, जो मुझ पर ही वार करते है
अपनी झूठी शान और इज्ज़त के खातिर
मानवता के परे, मौत मुझे देते है!
मैंने माँ बन कर यह तो नहीं सिखाया
मैंने बहन बन कर यह तो नहीं बतलाया
मैंने पत्नी बन कर यह तो नहीं समझाया
मैंने बेटी बन कर यह तो नहीं जताया
आखिर क्यूँ?
बार-बार, यह भेडिये मुझे ही नोचे
क्या मेरा जीवन, मेरा अपना नहीं?
भला, मेरे सपने ही अधूरे क्यूँ?
घुट रही हूँ आज
जल रही हूँ आज
छटपटा रही हूँ आज
साँसे खो रही हूँ आज,
अपने अन्दर पल रहे
परिवार की इज्ज़त के घड़े को भर रही हूँ
जो मेरे सपने, उम्मीदे, और खुशीयाँ
को दो मुहँ वाले साँप की भाँति हर पल निगले जा रहा है!
किस पर करू भरोसा
किस से कहूँ अपनी बात
मेरे अपनों ने मुझे लुटा
मेरा अस्तित्व कर दिया झूठा
खो गई सावित्री, ना दिखेगी कोई सीता
क्या यही है? मानवता का विकास?
बुझ गयी सारी आस
छोड़ जाऊँगी अपनी कोरी लाश!
6 comments:
"मैंने माँ बन कर यह तो नहीं सिखाया
मैंने बहन बन कर यह तो नहीं बतलाया
मैंने पत्नी बन कर यह तो नहीं समझाया
मैंने बेटी बन कर यह तो नहीं जताया"
Liked it very much. But sadly, its not just men who are involved in the crimes but also women themselves. I still do not understand how can one kill their own blood.
izzat ka fanda aurat ke gale mein hi kyon?? maan-apmaan-samman samaaj ki vikrit soch sab ko aurat ke kandhon par daalti hai.
Viji: thanx for ur comment!
Poeticbreak: sahi kaha aapne, cooment karne ke liye dhnyavaad!
unbelievable: sadness, pain, dedication, happiness, and love ... we should respect women.
cheers ! keep it up Rachana....
कविता स्वान्तःसुखाय के लिए बहुत लोग लिखते हैं . किसी हलचल पर अपने विचार से उसके साथ खड़े होने का साहस अच्छा लगा .
unbelievable
we should respect women.
happy women's day
cheers ! keep it up Rachana....
Post a Comment