"A bi-lingual platform to express free ideas, thoughts and opinions generated from an alert and thoughtful mind."

Sunday, June 6, 2010

पर्यावरण बचाओ!




जागती आँखों से सोने वालों
मिथ्या जीवन को भोगने वालों!
मुड के अपने आधार को सोच ज़रा
आवाज़ लगा, पर्यावरण बेसुध है कहाँ पड़ा?
जो आज, सिसक-सिसक दम तोड़ रहा
तू फिर भी क्यूँ मौन रहा?

याद नहीं!
तेरे जन्म पर हवाएँ रागीनिया गाई थी
दिशायें ख़ुशी से झूम उठी थी
मोरनी नाच के मन हरषाई थी
हरियाली, सबके मन में उतर आई थी!

फिर बाबा ने कहा था,
लगता है मानो, सृष्टी तुझे दुलारती है
अपने आप में समाती है!

प्रकृति अपना बंधन निभाती रही
तुझे कभी ना जताती गयी
हाँ, खुद खाली होती गयी!
तू कैसे अपना कर्त्तव्य भूल गया?
अपने अस्तित्व के रज-कण से ही दूर होता गया!

प्रकृति और जीव इस जीवन के मूल आधार
जो ना बढाया अभी हाथ,
छुट जायेगा साथ
इसलिए, पर्यावरण बचाओ
जीवन को लौटाओ!

Related Posts :



0 comments:

Post a Comment