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Wednesday, June 9, 2010

आप, तुम, और मैं!




आप!

आपका एहसास, आपके नहीं होने से ज्यादा अर्थपूर्ण है
क्षण भर की अनुभूति
खिला देती है फूल बहार के
जगमगा देती है, ज्योति नैन द्वार की!

तुम!

कौन हो तुम?
क्या वही जो बिन कहे चले गए थे?
क्या वही जो बिन बुलाये आये हो?
क्या वही जो आँखों के सामने भी ओझल खड़े हो?
तुम, वही हो ना!

मैं!

आईने में देखती हू जिसे
पहचाना सा लगता है
पल में क्यूँ ना जाने यह मीलो की सैर करता है
आप और तुम की याद में ही धसा रहता है!

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3 comments:

Siddhesh Kabe said...

did not understand a lot...poor hindi but sounded like Gulzar poem nice!!! I #Like

Anonymous said...

i can understand....its beautiful!!!
Amrita

Rachana said...

Siddhesh: I can help youi understand the poem. It is simply the flow of emotions about main, tum aur aap!

Amrita: Thanks!

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