Wednesday, December 21, 2011
Higher Education in India!
Counting on its firm stand on high-tech verticals such as biotechnology and information technology, India is rushing towards commendable economic success and modernization in the 21st century knowledge race. Unfortunately, its ailing higher educational system, is proving a serious impediment in its path to prosperity. With the progression of private institutions and entities in higher education, India has continuously failed in attaining world-class research and sustaining high-tech development.
Advantages and Shortcomings!
In today’s knowledge race, India enjoys an upper hand in so many ways. Being the third largest country in student numbers, only after China and the United States, India is fortunate to have its ancient academic tradition. The country has English as its primary language for higher education. However, due to lack of proper educational infrastructure, the country has a small number of quality departments, institutions and centers that can make a firm base for a bright higher education. The Indian educational system is complicated and hence, has limited opportunities for implementing new policies and strategies in higher education.
Statistically, only 10 per cent of Indians get higher education, quite less than its counterparts. Also, India’s academic pyramid doesn’t look too promising as none of its higher educational institutes/universities provide a solid base for constituting a fruitful academic structure in the country. Moreover, India has a limited number of world-class universities, colleges and departments where less than 1 per cent of students study currently.
Embarking a Promising Future!
To revive the present higher education system in India, emphasize should be given to address problems related to under-investment in libraries, laboratories, information technology, classrooms, and, teaching standards. Students and institutions should be encouraged to deal with increasing pace of politics into campus life.
It is difficult to build a world-class higher education standard in a day, but India surely has the capability to initiate reforms for strengthening the country’s global stand. The need is to mushroom more and more international standard universities and institutions and make them competitive for the world market.
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Media Driven Revolutionary Movement by Anna Hazare!
Anna Hazare’s movement for introducing a strong Lokpal Bill to deal with corruption is the most popular issue in India currently. Channeling people’s anger and support, Anna Hazare has stuck the chord that is becoming bigger and stronger by each passing day. The surging frustration and dissatisfaction is now shaking up the UPA (United Progressive Alliance) led government which clearly failed in tackling the corruption issue and demonstrating a firm commitment for the same. Amidst this confusion and chaos, media has become a true voice for conveying frustration to the authorities. Acting as a public voice, media is running wall to wall coverage to bring each and every update to make this movement truly revolutionary.
Media, in particular, electronic media has played a vital role in enlivening the momentum by ensuring round the clock coverage and keeping the pitch hot by broadcasting the protests happening across the country. It is remarkable to see that the Indian media has taken up a cause with such seriousness. In today’s world of every-minute TRP war, Indian news channels have even not spared stories like kids named Anna by parents or a peaceful march led by elders in support for Anna. Every story related to Anna is on high priority. Media, both television and print, has initiated the anti-corruption movement in the country by encouraging people to join hands.
The massive public response has shown the effectiveness of media power. Though the role and participation of media is debatable, it is an accepted fact that the aggressive stand of Indian media has miraculously connected people to speak for a cause. Media has provided the right platform to open up and question and forced government to consider what people want.
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Monday, October 24, 2011
बड़ी बात है
सब बदल रहा है
अब नहीं लगता
मरना बड़ी बात है
बड़ी बात तो
जीवत रह कर
मौत तुल्य भयावह परिस्तिथियों में
मौन खड़े रहना है
ख़ुशी की आकांक्षा में मृत जीवन को
घसीटना क्या कम बात है?
Thursday, October 20, 2011
पल आते जाते
सोचा था अपनी मर्ज़ी से जीयेंगे
जो मन आया करेंगे
हवा के पारो पर चढ़ उड़ेंगे
तितली संग फिरते रहेंगे
बारिश की बूदें जैसे
निर्मल कहते रहेंगे
सूरज की नर्म धूप में
बस लेटे रहेंगे!
ना कोई बंधन होगा
ना कोई आवाज़ देगा
उन्मुक्त गगन में
बस उड़ते चलेंगे
सोचा कहाँ होता है
सारा जहाँ अपना कहाँ होता है
थोड़ी सी धूप अपनी
थोडा सा बादल अपना
जो पल मिला अपना लिया
जो छूट गया वो भरमा गया
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Tuesday, October 18, 2011
Friday, September 30, 2011
विश्वास
विश्वास की हलकी रौशनी
को साथ ले कर
चल निकली थी!
रास्ते अनजाने
बड़े लम्बे थे
थामे वही विश्वास
बढती चली
जान गई हूँ आज
की काफी है
एक जीवन ऐसे ही
बीताने के लिए!
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Monday, September 26, 2011
हम-1
हम मिले
साथ चले
चलते रहे
दूर तक
मीलों पार
खोने लगे
रास्ते अपने
मुड़ के देखा
सुकून था
रास्ता जाना पहचाना था
यह वही जा रहा था
जहाँ हमें जाना था!
हम
याद नहीं
कब
कैसे
कहाँ
मैं और तुम
बन गए हम
कहते रहे
सुनते गए
सोचे बिना
चलते रहे
जुड़ते चले
फलते बढे
लगता है ऐसे ही
उलझ गए मैं और तुम
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Wednesday, September 14, 2011
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी न्यारी है
सौत ‘अंग्रेजी’ के डंक से ग्रसित बेचारी है
राष्ट्रभाषा होते हुए भी
अपने ही घर में पराई है
गुज़र गए दिन जब
हिंदी महारानी थी
अंग्रेजी पड़ी उसके पाँव
हिंदी अभिमानी थी
बदला स्वरुप, बदली काय
हिंदी पर पड़ गई घनघोर काली छाया
अपने अस्तित्व को बचाती
हिंदी अपने ही आँगन सकुचाती है
हिंदी विकास चाहिए तो
मिलाना होगा हाथ
पैरो की बेडी नहीं
बनाओ हिंदी को सर का ताज
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Monday, September 12, 2011
बातें
खट्टी-मीठी
तीखी-रसीली
भूली-बिसरी
नयी-पुरानी
मनभावन-मतवाली
गुदगुदाती- टीस जगाती
कभी हसांती-कभी रुलाती
बातें ख़तम कहाँ होती है
एक पल में
मीलों पार पहुच जाती है
पुराना-नया सब सामने आ जाता है!
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Monday, September 5, 2011
ऊँचाई
समझ नहीं आता ऊँचाई का चक्कर
आखिर मिलना यही है मिटटी में जा कर
जन्म से ही सब ऊँचाई को तरसे
ऊँचाई
कितना लुभाती है
बाद में बहुत सताती है
कितनी ऊँचाई ?
जहाँ तुम दूसरों को देख ना सको
जहाँ तुम खुद को पहचान ना सको
जहाँ तुम छोटी-छोटी खुशियों को तरसो
जहाँ तुम संतुष्ठी को तुम खोजो
मुझे नहीं ऊंचा उठना उतना
जहाँ टूटने लगे संजोया सपना
छूटने लगे हर अपना
ऐसी ऊँचाई व्यर्थ है ना?
Saturday, September 3, 2011
मेरी अनुभूति
वही दिन है
वही समय है
शायद वही घडी है
ना वही तुम हो
ना वही मैं हूँ
अनुभूति बदल रही है
मेरे सोचने का अंदाज़
तुम्हारे होने का आभास
इस अनोखी जीवन लीला ने
सैकड़ो मोड़ बदल दिए
कुछ नई राहें रास्ते खोल दिए
शायद यही सही शुरुआत है
एक नए जीवन की!
Wednesday, August 31, 2011
मैं हूँ
अंतरविरोधो से बुने घेरे में
मकड़ी के जाल की भाति उलझी हूँ
हाँ और ना की
दुर्गम प्रशनावली में
सिसकियाँ लेती हूँ
पर मैं हूँ
आगे बढती
मरती जीती
हर कहीं!
Tuesday, August 9, 2011
Me on My Birthday!
Rediscovering Myself on Birthday!
Poem lover
Passionate thinker
Dedicated foodie,
Regular shopper
Silent writer
Rebellious moody
Highly emotional
And lot more…!
This is me on my birthday!
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Monday, August 8, 2011
दोस्ती
समय के साथ-साथ
हमारी दोस्ती भी
अनेक रूप धर रही है
अंगडाई लेती
परिवर्तित हो रही है शायद बुड्ढी हो रही है
गंभीर हो रही है
और विस्तृत हो रही है!
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Thursday, August 4, 2011
वक़्त
वक़्त पानी की तरह
बहता जाता है
वक़्त पत्थर के समान
जड़ भी बन जाता है
वक़्त सागर के समान
गहराता जाता है
वक़्त बिजली की तरह
दौड़ भी लगाता है
वक़्त खुशबू बन
उड़ता चला जाता है
वक़्त सांझ तले
ढल भी जाता है
वक़्त सूरज के संग
मुड़ कर आ जाता है
वक़्त कोशिश बन
फिर मुस्कुराता है
वक़्त आँखों में छिपा
डर दिखाता है
वक़्त रंगों भरा
सपना सजाता है
वक़्त पर्दा हटा
कभी भरमाता है
वक़्त आस बन
जीना सिखाता है
वक़्त थम जाए जब
न जिया जाता है, ना मरना आता है!
वक़्त संभालता है
वक़्त बिगाड़ता है
वक़्त बताता है
वक़्त दिखाता है
वक़्त से आगे क्या है?
Tuesday, July 26, 2011
भरा घढा
Thursday, July 21, 2011
Friday, July 15, 2011
मुझे लड़ना है तुमसे !
Terrorism, Terrorist, Terrorism in India, Mumbai Attacks |
मुझे लड़ना है तुमसे
हाँ आज उलझना है तुमसे
कितनो की जाने ली है तुमने
कितने ही घरो को उजाडा है तुमने मौन खड़ी अब ना सहूंगी
आगे बढ़ तुमसे लडूंगी!
मानती हूँ, कमज़ोर नहीं मैं
ढृढ़ निश्चय के साथ
निरंतर बढ़ूंगी
आँखें मिला सामना करुँगी
यही खड़ी तुमसे लडूंगी!
तुम हो मौत के सौदागर
क्या मिला खून-खराबा फैला कर
क्या मिली शान्ति चिराग बुझा कर?
सवालो के दायरे में
अब ना घुटूंगी
ज्यादती अब ना सहूंगी
आगे बढ़ तुमसे लडूंगी!
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Thursday, July 14, 2011
Thursday, July 7, 2011
इंतज़ार
सुबह तुम जाते हो
शाम को लौट आते हो
बीच में रहता है इंतज़ार
अदभुत् अनोखा इंतज़ार
इंतज़ार आस का
तुम्हारे आभास का
हमारे साथ का
अपने विश्वास का
अच्छा लगता है इंतज़ार
हमेशा करुँगी
ऐसे ही इंतज़ार !
बीच में रहता है इंतज़ार
अदभुत् अनोखा इंतज़ार
इंतज़ार आस का
तुम्हारे आभास का
हमारे साथ का
अपने विश्वास का
अच्छा लगता है इंतज़ार
हमेशा करुँगी
ऐसे ही इंतज़ार !
Tuesday, July 5, 2011
अनोखा चित्र
विहंगम दृश्य है
मीलों फैला कैनवास है
ना कोई कूची है
ना बनाने वाला चित्रकार है
आकाश ने नीला रंग भर दिया
तरुनाई ने हरा भी जोड़ दिया
फूलो की रंग बिरंगी आभा भी
चित्र में है गहरी समाई
बरखा की बूंदों जब पास आई
बिजली की चमकार भी डट कर गुर्राई
पंछियो के कलरव ने किया इसको जीवंत
देख कर हुई मैं मगन
लगता है चित्र पूरा हो गया भाई!
Saturday, July 2, 2011
सपने
सपने
बंद आँखों
में ही सजते है
एक अनजानी दुनिया में
स्वतंत्रता का एहसास दिलाते है
आँखें खुलते ही
सच्चाईया समझा देती है
अपने उड़ने की सीमा
अपनी धुंधली स्वंतंत्रता!
Tuesday, June 28, 2011
मरते रिश्ते
कुछ रिश्ते
पैदा होने से पहले
निर्धारित कर दिए जाते है
आँखें खोलते ही
हम उन ही रिश्तो का
हुकुम बजाने लगते है
वही रिश्ते
समय के साथ-साथ
हमें सताने लगते है
बोझिल बने, कंधे झुकाने लगते है
फिर भी, तोड़े नही जाते
बस घिसटते जाते है
घाव गहराते जाते है
उसी मन में
जो कभी हरा भरा था!
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Monday, June 27, 2011
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