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Thursday, August 4, 2011

वक़्त









वक़्त पानी की तरह 
बहता जाता है 
वक़्त  पत्थर के समान
जड़ भी बन जाता है
वक़्त सागर के समान
गहराता जाता है
वक़्त बिजली की तरह
दौड़ भी लगाता है
वक़्त खुशबू बन
उड़ता चला जाता है
वक़्त सांझ तले
ढल भी जाता है
वक़्त  सूरज के संग
मुड़ कर आ जाता है
वक़्त  कोशिश बन
फिर मुस्कुराता है
वक़्त  आँखों में छिपा 
डर दिखाता है
वक़्त रंगों भरा 
सपना सजाता है
वक़्त पर्दा हटा 
कभी भरमाता है
वक़्त  आस बन
जीना सिखाता है
वक़्त थम जाए जब 
न जिया जाता है, ना मरना आता है!
वक़्त संभालता है
वक़्त  बिगाड़ता है
वक़्त बताता है
वक़्त दिखाता है
वक़्त से आगे क्या है?



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1 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सब वक्त के हाथों मजबूर होते हैं ..

अच्छी प्रस्तुति

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