सोचा था अपनी मर्ज़ी से जीयेंगे
जो मन आया करेंगे
हवा के पारो पर चढ़ उड़ेंगे
तितली संग फिरते रहेंगे
बारिश की बूदें जैसे
निर्मल कहते रहेंगे
सूरज की नर्म धूप में
बस लेटे रहेंगे!
ना कोई बंधन होगा
ना कोई आवाज़ देगा
उन्मुक्त गगन में
बस उड़ते चलेंगे
सोचा कहाँ होता है
सारा जहाँ अपना कहाँ होता है
थोड़ी सी धूप अपनी
थोडा सा बादल अपना
जो पल मिला अपना लिया
जो छूट गया वो भरमा गया
2 comments:
थोड़ी सी धूप अपनी
थोडा सा बादल अपना
जो पल मिला अपना लिया
जो छूट गया वो भरमा गया
इतना भी मिल जाये तो बहुत है ...अच्छी प्रस्तुति
very good one ...
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