बेटियाँ!
उजड़े घर की दीवार पर रखे टिमटिमाते दीप
की रौशनी में भरी उम्मीद है
मन का सूनापन दूर करती है!
बेटियाँ!
मनोहर माला में गुथे धागे
की ताक़त है
माला में पिरोये मोतियों को समेट लेती है!
बेटियाँ!
बागो में विचरते पंछियो का
मीठा कलरव है!
जिसकी धुन, शब्द बन कर, मन भरमाती है!
बेटियाँ!
बरसात के मौसम में झरती
नर्म और स्वच्छ बूँदें है!
मन की गहराई नाप आती है!
बेटियाँ!
पानी में घुले रंगों का
समावेश है!
उन्छूए मन को छू जाती है!
बेटियाँ!
मिटटी में रोपे हुए बीज
में छुपा सपना है
पल-पल आँखों में बढ़ता सच दिखाती है!
बेटियाँ!
बीते हुए कल का सार
आज का सच और,
आने वाले कल का परिवार है!
1 comments:
बेटियाँ!
मिटटी में रोपे हुए बीज
में छुपा सपना है
पल-पल आँखों में बढ़ता सच दिखाती है!
इस कविता में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
Post a Comment