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Monday, August 30, 2010

कठिन जीवन की डगर!




हमारे जीवन की डगर
बड़ी ही कठिन है
पानी के मोल
पसीना बहता जाए
हाय, हाथ फिर भी कुछ ना आये!

सफलता आसमानों पर टंगी है
इस ना ख़तम होती दौड़ में
भागने के लिए, अब जान भी कहाँ बची है!

जो मुश्किल से आगे बढ़ने का साहस जब दिखाया
पीछे वाले का पैर अपने सर के ऊपर पाया
ऐसी स्थिति है की रात तो रात
दिन में भी तारों को आँखों के सामने ही पाया!

तकलीफ भरी इस जीवन में
चैन से लेने की घड़िया भी कहाँ है
एक के बाद एक
अपेक्षाओ के मोह जाल में मन फसा है!

पानी के मोल
पसीना बहता जाए
हाय, हाथ फिर भी कुछ ना आये!

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2 comments:

Anamikaghatak said...

शब्दो का चयन अति सुन्दर्………………॥

Dr. Pratibha Singh said...

himmat ho junoon ho agar,
phir kis baat ka hai darr,
haathon se zindagi ko uthakar
apni jeb mein rakh lo

be positive and u r doing so good phir kis baat ki fikar

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