"A bi-lingual platform to express free ideas, thoughts and opinions generated from an alert and thoughtful mind."

Thursday, August 12, 2010

स्वदेश!




प्यारा मुझे स्वदेश
कण-कण में जिसके एकता का सन्देश!
मानवता ही हमारा परिवेश
प्यार की डोर में ही बसते है महेश
पहने सबने अलग-अलग है वेश
ना रखते हम मन अपने द्वेष
कहने को ना बचा कुछ शेष
सबसे उपर है मेरा देश
पाया जहाँ मैंने जीवन का अमूल्य सन्देश!

Related Posts :



0 comments:

Post a Comment