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Friday, August 6, 2010

तीन त्रिवेणी- 9!




1. तुम्हारी दोस्ती है या जंजाल
जितना निकलना चाहती हूँ
उतना गहराती चली जाती हूँ!

2. आईने के सामने आईना रख दो तो
सामने की सच्चाई दिख जाती है
शायद, इसलिए तुम मेरे आगे चलते हो!

3. बिखरे पन्ने, लड़खड़ाते कदम
जब साथ में मिले तो
दोस्ती के मायने ही बदल गए!

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