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Wednesday, August 25, 2010

देर से आये मेघ!




सजीले, गरजते और सवरते आये है मेघ
टकटकी लगा के बैठे राह जिनकी
छोड़-छाड़ के अपनी शैय्या और सेज!

क्यूँ हठीले, तुमने देर लगाई
कब से तरस रही थी धरती की तरुनाई
अब कहना मत, क्यूँ मुह फुलाए बैठी है
छेड़ना ना, यह तो बड़ी हठी है!

जो आये हो अबकी बार
वादा करते जाओ लगे हाथ
देर ना लगाना अगली बार
भर जाओगे अमृत रस की बहार!

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1 comments:

मनोज कुमार said...

सुंदर, सरस प्रस्तुति।

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