गली की नुक्कड़ पर से
हवा में घुली उस खुशबू
को कोई कैसे नज़रंदाज़ करे?
हलवाई की कढ़ाई में
हौले-हौले, तेल में डूबे
हलकी आंच में पके
भूरी टोपी पहने
बच्चे और बड़ो सबको
जैसे बुलाये, आओ चले भागे आगे!
कैसे अब मैं मन को रोकू
आज फिर समोसे खाने की सोचू…!
Samose
Gali ki nukkad par se
Hawa mein ghuli us khusbhoo
Ko koi kaise nazarandaz kare?
Halwai ki kadhai mein
Haule-haule, tel mein dube
Halki aanch mein pake
Bhuri topi pehne
Bache aur bado sabko
Jaise bulaye, aao chale bhage aage
Kaise ab main man ko roku
Aaj fir samose khane ki sochu…!
2 comments:
Dekh ke hi munh mein paani aa gaya....
Too good...
U r writing very good....Keep it up....
समोसे की याद दिला दिया न.. अब आकर खिलाओ .. अकेल खाने की हिम्मत भी मत करना.. अब तो खाकर आना हे पड़ेगा. तुम्हे मूलं है ये मेरी कमजोरी है.. इसलिए लिखा.. सच मैं मन को भा गया .
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