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Monday, August 23, 2010

आया घर याद!




बारिश हो रही है
तन के साथ-साथ
मन भी भीगा रही है!

बारिश ने लगा जोर
उड़ा लिया घर की मिटटी का कोर
खुशबू जिसकी फैली चऊ ओर
जो है मेरी ज़िन्दगी की भोर!

भीनी-भीनी खुशबू
घर को मेरे और पास लाये
दूर कहाँ हूँ?
इसका एहसास मुझे पूरा बनाये!

घर में मेरी माँ है
जिसके आँखें सूनी है
पर हाथों में बड़ी फुर्ती है!
जताती नहीं, बतलाती नहीं
मेरी यादों के जंगल में ही विचरती है वो!

पापा कुर्सी पर बैठे है
जो दिल को संभाले रहते है
उनकी कमजोरी, माँ को तडपाये
मन का बाँध ही उनका बना उपाए
मालूम है, मेरी कमी उनको ख़ाली बनाये!

और एक प्यारा सा है भाई
लड़ता, झगड़ता और मुस्कुराता
कहता, दीदी होती तो अच्छा होता
मज़े करता और उसको सताता
माने या ना माने, मुझे बहुत मिस करता है!

बाहर बारिश हो रही है
घर की याद की डोर मुझे खीच रही है
सराबोर पत्ते, पत्थर, कालिया, भवरे
भीगा मेरा मन भी, बेचारा और क्या करे?

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1 comments:

मनोज कुमार said...

घर-बाहर की अच्छी तस्वीर खींच दी है आपने।

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