जब भी कभी मन दुखी और उदास होता है
छत पर पहुच जाती हूँ
कोने में लगे मुरझाये पेड़ के नीचे
अधमरा चाँद सहसा ही दिख जाता है!
मैं चाँद को
और चाँद मुझको
देख कर
अपनी क्षुब्धा शांत करते है!
जब इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में
हम दोनों अकेले ही मिलते है!
एक टकटकी लगा कर
आँखों में आँखें डाल कर
हम घंटो बातें करते है
और अपना मन हल्का कर लेते है
जब कभी अपनी पीड़ा आंसुओ के सहारे भी
हम व्यक्त कर लेते है!
आज अमावस की रात
चाँद भी ओझल है दूर कही
साथी, कमी खल रही है
बोलो क्या है बात सही?
काली रात का खालीपन
भीगोये जाए मन
आएगा कब, साथी मेरा
बस यही पूछे सारा सूना चमन!
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति…………॥
This loneliness gives us the golden chance to write beautiful poems..good one
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