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Monday, August 23, 2010

छोटी सी बूँद की यात्रा!




छोटी सी बूँद आज चली
घर छोड़ बादल का
चुप चाप आगे बढ़ी!

एक अंश अपना सागर में मिला
सीप की मोती बनी!
एक अंश अपने पत्तो पर गिरा
जीवन का पर्याय सजी!
एक अंश धरती में मिली
खुशबू का संचार करती!
एक अंश नदियों में मिली
अमृत की धरा प्रवाह बन चली!

छोटी सी बूँद आज चली
बादल पिता का घर छोड़
धरती माँ की गोद के मिलन को चली!

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1 comments:

मनोज कुमार said...

कविता की भाषा सीधे-सीधे जीवन से उठाए गए शब्दों और व्यंजक मुहावरे से निर्मित हैं।

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