Tuesday, December 21, 2010
जादू की हँसी!
चूरा लो खुशबू फूलो की
छुपा लो गहराई बादल की
समेट लो तरुनाई धरती की
आँखें मूंद लो धरा की सच्चाई
बूझा डालो गर्मी अग्नि की
मुह फेर लो रौशनी हुए जो उजालो से
पर लौटा दो
जादू से घुली तुम्हारी हँसी
जिसकी महक बसी
मेरी यादों में
और साँसों में!
Monday, December 20, 2010
A Love Story!
Met accidentally, spoke rudely, behaved badly, hated most importantly, fought with spirited high, laughed carelessly, made fun extremely, thought profoundly, listened carefully, spoke openly, trusted blindly, waited eagerly, touched internally, hands folded with firm closeness, eyes on you I rejoice and become a shy. Truly, madly, deeply, why I loved you? Dear mice!
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I am Sold!
When heart melts
Heartbeats crack
Eyes filled
Hands shiver
Legs silent
Face lost radiance
Mind goes numb
Veins go cold
Words no longer bold
Have nothing, everything just sold!
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Monday, November 22, 2010
अबकी बार...!
अबकी बार आओ तो
बातों में हसी नहीं
आँखों में चमक लाना तुम
जिसकी रौशनी में
अपने आप को पहचान सकू!
अबकी बार आओ तो
माथे पर बल नहीं
मुश्किलों का हल लाना तुम
जिसके सहारे मैं
अपना आसमान छू सकू!
अबकी बार आओ तो
आँखों की नमी छुपाना ना तुम
कोरे, धुले मन में
शायद कही मैं
अपना नाम ढूंढ़ सकू!
अबकी बार आओ तो
मीठी यादों के साथ-साथ
खट्टी झलकिया भी लाना तुम
इस घुली-मिली चासनी में
मैं खुद को भीगो सकू!
जो अबकी बार आना तुम
सब बदल देना तुम…!
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Saturday, November 20, 2010
Monday, November 15, 2010
रिश्तो की कसमसाहट!
रूठ जाते है रिश्ते
बिना शिकायत
टूट जाते है रिश्ते
बिना खटखटाए
ग़ुम हो जाते है रिश्ते
बिना बताये
भुलाये जाते है रिश्ते
बिना नज़रे मिलाये
आँखें बंद करते ही
जड़ हो जाते है रिश्ते
कसमसाहट बन
आवाजें खोते जाते है, रिश्ते!
पुराने और नए
मीठे और खट्टे
तीखे और जायकेदार
हमेशा के लिए
सो जाते है
धीरे-धीरे हाथ से फिसल जाते है, रिश्ते!
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Thursday, October 21, 2010
नन्हा पत्ता!
कोने के उजड़े घर के बरामदे में
अकेला पेड़ अपनी आखिरी पत्ते को निहार रहा था
मंद-मंद मुस्कुरा रहा था
जैसे बीते यौवन को पुकार रहा था!
आंधी आई
उसे भी शरारत ही भाई
वेग बढ़ा पेड़ पर घिर आई
नन्हा पत्ता फिर भी पीछे ना हटा
हिम्मत कर, अपने स्थान पर ही डटा रहा!
बादलो ने देखा
आंधी की हुई दुर्दशा
दौड़ पड़े, टूट पड़े
धमाधम पानी के बुलबुले फूट पड़े
निडर पत्ता, सब सह गया
पानी को अमृत समझ कर पी गया!
बीती काली रात, लाई उजली सुबह साथ
सूरज का दमकता मुख सामने था
कोमल पत्ते को जीवन अभी मिला था
सोचने लगा की सपना था या कोई भरम
मुस्कुरा किया किरणों का स्वागत
नया दिन और एक नई शुरुआत
पेड़ पिता का ले आशीर्वाद
नन्हा पत्ता खिल उठा
आज फिर वो जी उठा!
Wednesday, October 20, 2010
एक दिन…!
तुम और मैं
खड़े मीलों पार
बीच है ना नाव और पतवार
अब कैसे कहे मन की बात
जानते है यह दोनों हमें है प्यार!
एक दिन…!
सच है, हमारे धर्म है अलग
फिर भी आँखों में है अपनी
प्यार की गहरी झलक
क्यूँ नाम तुम्हारा सुनके
चेहरा मेरा जाता चहक!
एक दिन….!
क्या वो दिन आएगा?
जब हम कर सकेंगे
एक दूसरे से वही बात
जब टूट जाएगी
बीच में खड़ी हर दीवार!
एक दिन….!
तुम तुम रहोगे
मैं मैं रहूंगी
समुन्दर पार
समेटे सपने सजे खुली आँख
बन जाएगी बिगडती सब बात!
एक दिन…!
जब तुम कह सकोगे मुझसे
की तुमसे है मुझे प्यार
बिना जिझक और डर
ऊचे पेड़ पर बनायेंगे
बसेरा अपना जहाँ खुशिया खड़ी द्वार!
एक दिन…शायद ऐसा होगा…हाँ, सब अच्चा होगा!
Tuesday, October 19, 2010
तीन त्रिवेणी- 10
1. झुंझलाते, लड़ते जो तुमने कहा था
आधी कच्ची नींद में जो मैंने सुना था
बात शायद अब तक अधूरी है?
2. हर आहट पर
मुड कर मैंने पीछे देखा
हसी तुम्हारी अब तक गुदगुदा रही है!
3. सूरज फीका लगता है
चाँद भी ठंडा लगता है
तुम्हारे हाथों की गर्मी में पूरी तरह से पिघल गई हूँ!
Monday, October 18, 2010
तीन त्रिवेणी- 9
1. सोचती हूँ! जब तुम नहीं मिले थे
फूलो के रंग खिले नहीं थे
क्या तुम बहार साथ लाये हो?
2. खाली मन, खाली आँखें
देख रही थी टूटा सपना
अच्छा, तुमने रंगों को आँखों में छुपाया था?
3. तुम्हारा और मेरा फासला गहराता है
मन मेरा उसमे डूबता जाता है
आओ, समुन्दर में ही घर बना ले!
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मेरी सीमा
मेरे कंगन मेरी सीमा दिखाते है
उनकी गोलाई के घेरे में ही
मेरे साँसों की लडिया बंधी है
जो मैंने इसको पार करने की सोची
निशब्दता मुझे डस लेगी
खालीपन मुझ पर हावी होगा
फिर वो तय करेंगे,
मेरी नई सीमा क्या है?
Wednesday, October 6, 2010
औरत हूँ!
रोज़ सबेरे
चौके में
चूल्हे के पीछे
कहानी वही गढ़ती हूँ
औरत हूँ, बीज लिए फिरती हूँ!
बर्तन का शोर
धुंए की हल्की भोर
बनी मेरी आवाज़
लगे मधुर, बिना कोई साज़
औरत हूँ, ख़ामोशी को पढ़ती हूँ!
पति का सम्मान
बच्चो की मुस्कान
घर की मर्यादा और मान
ध्यान सबका मैं रखती हूँ
औरत हूँ, भविष्य रचती हूँ!
खुली हवा में घुटती हूँ
बिना हथियार लडती हूँ
माटी से बनी
गूंगी गुडिया
औरत हूँ, रोज़ बनती और टूटती हूँ!
Saturday, October 2, 2010
Sometimes!
Sometimes, mirror does not show my real reflection.
Sometimes, word does not highlight my essence
Sometimes, the eye does not show my true color
Sometimes, I am not what I am.
Sometimes, I get lost when I am here
Sometimes, I lose when I win
Sometimes I cry when I laugh
Sometimes, I am that I am not.
Unmemorable Memories!
Unmemorable memories are remembered the most
Like a devilish ghost
It creeps my mind
Hallucinating my thinking
Blabberblah…words start sinking!
Unmemorable memories
Knock the door
And, I watch silently!
Thursday, September 30, 2010
A Massage for Peace!
Secularism is my religion. I laugh with my people, observe their faiths and beliefs to inculcate good things in me to become a better person every day. I cry with their pain that touch me inside deep till my subconscious. Like everyone, I have questions to ask. Division, why? It is uninvited and unnecessary. We are different communities that further contribute to make a large family called ‘society.’
Like every family, we respect elders who guide us, children who follow us, women who bore and nurture us, friends who share our hearts and teachers who help us to understand the difference between good and bad.
Why discrimination? Why wars? Why you and me? We have greater issues to address than proving our rights on everything. The struggle of fulfilling everyday’s needs and making a niche comfortable life is the crust of everyone’s life. Is there any space to fight over a futile matter that is still persisting after the 60 years of independence?
Join hands and let’s not get involved too much in this prolonged issue that tomorrow becomes the primary reason for killing your human values. Be human!
Like every family, we respect elders who guide us, children who follow us, women who bore and nurture us, friends who share our hearts and teachers who help us to understand the difference between good and bad.
Why discrimination? Why wars? Why you and me? We have greater issues to address than proving our rights on everything. The struggle of fulfilling everyday’s needs and making a niche comfortable life is the crust of everyone’s life. Is there any space to fight over a futile matter that is still persisting after the 60 years of independence?
Join hands and let’s not get involved too much in this prolonged issue that tomorrow becomes the primary reason for killing your human values. Be human!
Saturday, September 25, 2010
Nightmare!
Amidst the darkness of the night, I was running breathlessly, trying to find a shed and overcome my tattered life.
I was battling hard to overcome the juggle between ‘truth’ and ‘falsehood.’ The faster I ran, the nearer it came.
Fear caught and trapped me and I woke up from one of the worst nightmares.
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My Life,
short stories
Monday, September 20, 2010
A Hopeful Smile!
I was all negative after getting the news of my team’s shifting to the new building, the very next day. I loved this place, why us?
Sadness climbed on my face. Then, a man came forward and said, “I’ll be your neighbor in the new setup. Can we be friends’?
It was a hopeful smile.
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Thursday, September 16, 2010
The Sound of Soul!
Yes, it was a loud bang. She rushed out to close the door, windows, and curtains. Frightened, she sapped all the links with the outside world. But the sound keeps increasing with the time. The intensity was making her mad.
It was the sound from her soul, the most important reason for her existence.
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Wednesday, September 15, 2010
कहानी!
सुनाओ ना माँ!
एक और कहानी
वही वाली
जिसमे था एक राजा और एक रानी
मधुर, सुकोमल कहानी!
रानी थी जिसमे बड़ी सायानी
राजा था थोडा अभिमानी
कहो ना, माँ
कैसे बढ़ी कहानी
राजा और रानी की कहानी!
थी उसमे ना परियो जैसी राजकुमारी
उछलती, कूदती, गुडिया रानी
दोस्तों से घिरी रहती
लगती है मुझे
मनभावन बड़ी कहानी!
और आया था ना एक दिन
वेश बदल मायावी जादूगर
चुरा ले गया कोमल राजकुमारी
सुना कर गया महल और नगरी
दुखभरी है यह कहानी!
दुखी राजा ने सभा बुलाई
सारे नगर में घोषणा करवाई
जो ढूंढ़ लायेगा, राजकुमारी का पता
पायेगा वो ईनाम बड़ा
उम्मीद भरी है कहानी!
लकडहारे का बेटा
सोच में पड़ा
हिम्मत जुटा राजा के पास गया
मैं ढूंढ़ के लाऊंगा
राजकुमारी को छुड़ा लाऊंगा!
वाह, मजेदार है कहानी!
बहादुर, नौजवान ने युक्ति लगाई
राजकुमारी को बचाने की शक्ति उसमे आई
पता लगाया, एक रक्षक उठा ले गया
सारे नगर की खुशिया उड़ा ले गया
बोलो ना, आगे क्या कहती है कहानी?
तैयार हो, घोड़े पर सवार
पंहुचा राक्षस की गुफा के द्वार
चुपके से जा, देखा राजकुमारी थी बेहाल
राक्षस फसा था मद के जाल
हिम्मत वाली है कहानी!
हौसला जुटा राक्षस को ललकारा
तब जा के राक्षस सामने आया
दोनों में हुई लड़ाई भारी
लड़ाई जीत, छुड़ाया नगर दुलारी!
वाह, बलवानी लकडहारे की कहानी!
राजकुमारी को ले लौटा नगर
मुह पर थी उसके चमक
हर्षित, राजा ने उसे गले लगाया
सारा अभिमान चुटकी में भुलाया
यही ख़तम हुई, कहानी!
राजा, रानी की कहानी
दुबारा सुनना ना मम्मी!
Tuesday, September 14, 2010
मेला देखने जाऊंगा!
माँ, मैं भी मेला देखने जाऊंगा
तमाशे, रंग बिरंगे गुब्बारे
इनसे अपना मन बहलाऊंगा!
हाँ माँ, आज तो मैं मेला देखने जाऊंगा!
देखो, सब जा रहे है
राजू, मोहन, रीना, मीना
कितना मुझे जला रहे है
नए-नए कपडे पहने
सब बड़ा इतरा रहे है
जाने दो ना, मैं भी मेला देखने जाऊंगा!
डरना मत, झूले में मैं नहीं घबराता
चाट, पकौड़े खाने में तो और भी मज़ा आता
बँदूक पर निशाना लगा, ईनाम मैं ही पता
हर प्रतियोगता में नंबर 1 मैं आता
अब तो बात मान लो, मेला देखने जाऊंगा!
Monday, September 13, 2010
बरखा!
छलनी-छलनी हो गया आकाश मेरा
सपनो की धारा भी बह चली
बंद आँखें भी उफनती जा रही है
लगता है
मेरे मन के सूने आँगन में
आज झम-झम बरखा नाच रही है!
Friday, September 10, 2010
ज़िन्दगी!
1. भूख का टुकड़ा ले के
रगडती चली जा रही है
हाय, ज़िन्दगी बढ़ी चली जा रही है!
2. एक पुल लटका हुआ है
इधर झूठ क्षणभंगूर काया पर चमक रहा है
उधर सच दमकती मुस्कान लिए मेरे होठों पर सजा है!
3. ज़िन्दगी और क्या है?
मेरे आस पास में सजे रंग ही तो है!
बारी-बारी सभी रंग एक दूसरे पर हावी होते है
पर निष्कर्ष कोरा ही रहता है!
4. शब्दों का फेर है
हर काम में थोड़ी देर है
ज़िन्दगी फिर भी
अंधेर नहीं, सिर्फ सवेर है!
5. तुमसे ज़िन्दगी है
तुम ज़िन्दगी से नहीं
क्यूँ ना, तुम रोज़ नया बहाना ढुंढ़ो
मुस्कुराने का!
Sunday, September 5, 2010
रंग बिरंगी चूडिया!
हाथों में सजी है
रंग बिरंगी चूडिया
जोह रही है बाट
बीते पल और घडिया!
बचपन का खेल
गुड्डे और गुडियो का मेल
हसी के फव्वारे
चूडियो की खंकार बुलाये, रे!
जवानी का जोर
मन उड़े बिना डोर
खीचे प्रीत की फास
अब चूडिया ही बची आस!
दुल्हन बन
तुम संग चली
बाबुल की हवा
पिया के अंगना बही
खन-खन चूडिया
फिर बजने लगी!
जब पिया भये परदेस
और आवे ना कोई सन्देश
चूडिया की गूँज
लावे है नयनो में बूँद!
रंग बिरंगी चूडिया
मिटाए दिलो की है दूरियाँ!
Saturday, September 4, 2010
छुट्टिया!
छुट्टिया आई!
खुशियाँ लाई!
घुमने की हो गई तैय्यारी!
पापा आये
टिकट भी लाये
मन मेरा
उड़े बिना पंख लगाये!
सुबह तडके जगना है
रेल-गाडी में जाना है
खूब मज़े अब करना है
पढाई से अब ना डरना है!
खिलौने वाला हाथी!
प्यारा मुझे खिलौने वाला हाथी!
यह तो मेरा सच्चा साथी
फीके लगे खिलौने बाकी
जब नज़र मेरी हाथी पर जाती
चाभी लगाओ
हाथी को नचाओ
करतब देखो
ताली तुम बजाओ!
Friday, September 3, 2010
नटखट चूहा!
सरपट भागे नटखट चूहा
मुह में लेकर माल-पुआ
पलक झपकते यह गुम हुआ!
दौड़ी मम्मी, डंडा लाई
आज तो तेरी खैर नहीं भाई
बड़ा सताए, गुस्सा दिलाये
अब तो तेरी शामत आई!
मारा डंडा लगा के जोर
टूटा फूलदान, हुआ भारी शोर
बेचारी मम्मी तकती रही
चूहा मुड़ गया बिल की ओर!
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