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Tuesday, December 21, 2010

जादू की हँसी!




चूरा लो खुशबू फूलो की
छुपा लो गहराई बादल की
समेट लो तरुनाई धरती की
आँखें मूंद लो धरा की सच्चाई
बूझा डालो गर्मी अग्नि की
मुह फेर लो रौशनी हुए जो उजालो से
पर लौटा दो
जादू से घुली तुम्हारी हँसी
जिसकी महक बसी
मेरी यादों में
और साँसों में!

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