हाथों में सजी है
रंग बिरंगी चूडिया
जोह रही है बाट
बीते पल और घडिया!
बचपन का खेल
गुड्डे और गुडियो का मेल
हसी के फव्वारे
चूडियो की खंकार बुलाये, रे!
जवानी का जोर
मन उड़े बिना डोर
खीचे प्रीत की फास
अब चूडिया ही बची आस!
दुल्हन बन
तुम संग चली
बाबुल की हवा
पिया के अंगना बही
खन-खन चूडिया
फिर बजने लगी!
जब पिया भये परदेस
और आवे ना कोई सन्देश
चूडिया की गूँज
लावे है नयनो में बूँद!
रंग बिरंगी चूडिया
मिटाए दिलो की है दूरियाँ!
5 comments:
यह कविता तरल संवेदनाओं के कारण आत्मीय लगती है|
कुछ कोमल भावनाओं का संगम है ये रचना ....
मन भावन कविता.
wow... gud post.....well written and brief....nice subject and presentation...keep blogging and all the best.......
By the way:
hi.........i'm a 15 year old blogger.....currently taking part in the "My Demand" contest......
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Greetings,
Mohammed!
kabhi khushi kabhi gammm lati yeh churiyan....
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