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Monday, November 22, 2010

अबकी बार...!



अबकी बार आओ तो
बातों में हसी नहीं
आँखों में चमक लाना तुम
जिसकी रौशनी में
अपने आप को पहचान सकू!

अबकी बार आओ तो
माथे पर बल नहीं
मुश्किलों का हल लाना तुम
जिसके सहारे मैं
अपना आसमान छू सकू!

अबकी बार आओ तो
आँखों की नमी छुपाना ना तुम
कोरे, धुले मन में
शायद कही मैं
अपना नाम ढूंढ़ सकू!

अबकी बार आओ तो
मीठी यादों के साथ-साथ
खट्टी झलकिया भी लाना तुम
इस घुली-मिली चासनी में
मैं खुद को भीगो सकू!

जो अबकी बार आना तुम
सब बदल देना तुम…!

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1 comments:

AD said...

:) Again the same question, real reason for such depth in your thoughts? It cant be without any reason for sure...:)

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