Tuesday, August 31, 2010
बेटियाँ!
बेटियाँ!
उजड़े घर की दीवार पर रखे टिमटिमाते दीप
की रौशनी में भरी उम्मीद है
मन का सूनापन दूर करती है!
बेटियाँ!
मनोहर माला में गुथे धागे
की ताक़त है
माला में पिरोये मोतियों को समेट लेती है!
बेटियाँ!
बागो में विचरते पंछियो का
मीठा कलरव है!
जिसकी धुन, शब्द बन कर, मन भरमाती है!
बेटियाँ!
बरसात के मौसम में झरती
नर्म और स्वच्छ बूँदें है!
मन की गहराई नाप आती है!
बेटियाँ!
पानी में घुले रंगों का
समावेश है!
उन्छूए मन को छू जाती है!
बेटियाँ!
मिटटी में रोपे हुए बीज
में छुपा सपना है
पल-पल आँखों में बढ़ता सच दिखाती है!
बेटियाँ!
बीते हुए कल का सार
आज का सच और,
आने वाले कल का परिवार है!
मैं!
जकड़ी रहती हूँ
मैं
अपने आप मैं!
बिधा मन लिए
बातों करती, चुप-चाप मैं!
पार ना कर पाई
यादों की परिधि और अमिट छाप लिए!
घावो की टीस भूलती
हर दिन करती पाप मैं!
आँखों की दूसरी और की कहानी
गढ़ती, सुनाती, जीती बिना संताप मैं!
जकड़ी रहती हूँ
मैं
अपने आप मैं!
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चाँद और मैं!
जब भी कभी मन दुखी और उदास होता है
छत पर पहुच जाती हूँ
कोने में लगे मुरझाये पेड़ के नीचे
अधमरा चाँद सहसा ही दिख जाता है!
मैं चाँद को
और चाँद मुझको
देख कर
अपनी क्षुब्धा शांत करते है!
जब इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में
हम दोनों अकेले ही मिलते है!
एक टकटकी लगा कर
आँखों में आँखें डाल कर
हम घंटो बातें करते है
और अपना मन हल्का कर लेते है
जब कभी अपनी पीड़ा आंसुओ के सहारे भी
हम व्यक्त कर लेते है!
आज अमावस की रात
चाँद भी ओझल है दूर कही
साथी, कमी खल रही है
बोलो क्या है बात सही?
काली रात का खालीपन
भीगोये जाए मन
आएगा कब, साथी मेरा
बस यही पूछे सारा सूना चमन!
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Monday, August 30, 2010
कठिन जीवन की डगर!
हमारे जीवन की डगर
बड़ी ही कठिन है
पानी के मोल
पसीना बहता जाए
हाय, हाथ फिर भी कुछ ना आये!
सफलता आसमानों पर टंगी है
इस ना ख़तम होती दौड़ में
भागने के लिए, अब जान भी कहाँ बची है!
जो मुश्किल से आगे बढ़ने का साहस जब दिखाया
पीछे वाले का पैर अपने सर के ऊपर पाया
ऐसी स्थिति है की रात तो रात
दिन में भी तारों को आँखों के सामने ही पाया!
तकलीफ भरी इस जीवन में
चैन से लेने की घड़िया भी कहाँ है
एक के बाद एक
अपेक्षाओ के मोह जाल में मन फसा है!
पानी के मोल
पसीना बहता जाए
हाय, हाथ फिर भी कुछ ना आये!
Wednesday, August 25, 2010
देर से आये मेघ!
सजीले, गरजते और सवरते आये है मेघ
टकटकी लगा के बैठे राह जिनकी
छोड़-छाड़ के अपनी शैय्या और सेज!
क्यूँ हठीले, तुमने देर लगाई
कब से तरस रही थी धरती की तरुनाई
अब कहना मत, क्यूँ मुह फुलाए बैठी है
छेड़ना ना, यह तो बड़ी हठी है!
जो आये हो अबकी बार
वादा करते जाओ लगे हाथ
देर ना लगाना अगली बार
भर जाओगे अमृत रस की बहार!
Monday, August 23, 2010
आया घर याद!
बारिश हो रही है
तन के साथ-साथ
मन भी भीगा रही है!
बारिश ने लगा जोर
उड़ा लिया घर की मिटटी का कोर
खुशबू जिसकी फैली चऊ ओर
जो है मेरी ज़िन्दगी की भोर!
भीनी-भीनी खुशबू
घर को मेरे और पास लाये
दूर कहाँ हूँ?
इसका एहसास मुझे पूरा बनाये!
घर में मेरी माँ है
जिसके आँखें सूनी है
पर हाथों में बड़ी फुर्ती है!
जताती नहीं, बतलाती नहीं
मेरी यादों के जंगल में ही विचरती है वो!
पापा कुर्सी पर बैठे है
जो दिल को संभाले रहते है
उनकी कमजोरी, माँ को तडपाये
मन का बाँध ही उनका बना उपाए
मालूम है, मेरी कमी उनको ख़ाली बनाये!
और एक प्यारा सा है भाई
लड़ता, झगड़ता और मुस्कुराता
कहता, दीदी होती तो अच्छा होता
मज़े करता और उसको सताता
माने या ना माने, मुझे बहुत मिस करता है!
बाहर बारिश हो रही है
घर की याद की डोर मुझे खीच रही है
सराबोर पत्ते, पत्थर, कालिया, भवरे
भीगा मेरा मन भी, बेचारा और क्या करे?
छोटी सी बूँद की यात्रा!
छोटी सी बूँद आज चली
घर छोड़ बादल का
चुप चाप आगे बढ़ी!
एक अंश अपना सागर में मिला
सीप की मोती बनी!
एक अंश अपने पत्तो पर गिरा
जीवन का पर्याय सजी!
एक अंश धरती में मिली
खुशबू का संचार करती!
एक अंश नदियों में मिली
अमृत की धरा प्रवाह बन चली!
छोटी सी बूँद आज चली
बादल पिता का घर छोड़
धरती माँ की गोद के मिलन को चली!
Saturday, August 14, 2010
आज़ादी की वर्षगाँठ पर…!
सोने की चिड़िया कहलाती थी
खुद पर कितना इतराती थी
अपने मजबूत परो की उड़ान से
सारी दुनिया पल में नाप आती थी!
मेरी उड़ान की अद्भुत गति
कर गई कितनो के सयम की क्षति
यही से शुरू हुई मेरे विनाश की कहानी
कैद हुई, उजड़े पर
कैसे कहू इसे अपनी ही ज़बानी!
रोई माँ, करहाये बच्चे
आपत्ति भारी, हम कब तक सहते
हाथ बढे, कंधे मिले
कदम चले, यह फिर कभी ना रुके!
काट बेड़िया, मुझे आजाद कराया
मेरी भुझी हुई लौ को फिर से जगाया
धन्यवाद पिता का
जो उजड़ने नहीं दिया अपना सरमाया!
लिए ग़ुलामी की गहरी छाप
मैं देखने लगी सपने
जिसमे सजाया मैंने अपना आज
सवालो में बिधा मन
क्या लौटा लाऊँगी अपना खोया सम्मान?
सवालो के घेरे में
फँसा है मेरा अस्तित्व
समस्याएं अनगिनत
करती हूँ उम्मीद की नीयत!
मेरी सफलता की कुंजी ही
मेरे बच्चो के जीवन की पूंजी
बेहतर आज, सफल भविष्य
इससे ज्यादा नहीं है मेरी चाहत
खुशिया भरपूर
सुविधाए परिपूर्ण
और क्या चाहिए, एक माँ को उसके जनम दिवस पर...!
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Thursday, August 12, 2010
स्वदेश!
प्यारा मुझे स्वदेश
कण-कण में जिसके एकता का सन्देश!
मानवता ही हमारा परिवेश
प्यार की डोर में ही बसते है महेश
पहने सबने अलग-अलग है वेश
ना रखते हम मन अपने द्वेष
कहने को ना बचा कुछ शेष
सबसे उपर है मेरा देश
पाया जहाँ मैंने जीवन का अमूल्य सन्देश!
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Monday, August 9, 2010
On My B’Day!
Birthday – a day
That reveals the story
Of life, every day!
Birthday – a colourful page
In the Golden Book,
Of life, every day!
RACHANA -- B' DAY SPECIAL!
R ightful in my direction,
A ccompanied by people I love,
C hange that my heart yearns to,
H eights that I admire where,
A ltitude that shines more clear.
N o desires remain unfulfilled;
A s I wish here, Happy B’day to me!
A B'Day Note!
It’s my birthday today. I am feeling really excited and happy as a young child. Right now, I am feeling introspective, emotional, hopeful and a little sad...a year older..:-) Earlier, I didn’t like birthdays in particular. But, after I entered into my work life, I started realizing and giving importance to every small moment which makes the life more beautiful and livable. I am thankful to God for blessing me with a beautiful and supportive family and a few friends whom I can look upon at the time of distress and sadness.
My idea of enjoying a great birthday is to pamper myself in every possible way. For that, I shopped, I ate, I wore, I acquired as much as I wanted yesterday. My anchor support and reasons of my living (family and friends) showered and still showering their love upon me with their kind blesses. Yes, I have every reason to enjoy and love the day!
Plans for the next year? I haven’t thought about any in particular as the day is about enjoying! Maybe, looking ahead to win more poetry competitions, do massive writings, explore new arenas, win hearts, create value and become more valued.
Happy B'Day, Rachana!
Friday, August 6, 2010
तीन त्रिवेणी- 9!
1. तुम्हारी दोस्ती है या जंजाल
जितना निकलना चाहती हूँ
उतना गहराती चली जाती हूँ!
2. आईने के सामने आईना रख दो तो
सामने की सच्चाई दिख जाती है
शायद, इसलिए तुम मेरे आगे चलते हो!
3. बिखरे पन्ने, लड़खड़ाते कदम
जब साथ में मिले तो
दोस्ती के मायने ही बदल गए!
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हर सुबह!
चुनती हूँ हर सुबह
अनाज में से कंकर
वही जो मुंह का
स्वाद बिगाड़ देते है!
बीनती हूँ हर सुबह
जीवन राह में उभरे पत्थर
वही जो उखाड़ फेकने के बाद भी
देर तक चुभते है!
Monday, August 2, 2010
आँखें!
1. आँखें मेरी दुनिया का झरोखा है
खोल दो तो अन्दर का आसमान साफ़ दिखता है
बंद कर दो तो अन्दर का मैल उभर आता है!
2. आपकी आँखें मेरे जीवन की मार्ग दर्शक है
इसकी रौशनी ही मुझे ले जाती है
उस ओर, जहाँ मेरी नियती खड़ी है!
3. तुम्हारी आखें मेरे जीवन का प्रतिबिम्भ है
लौटा लाती है उन मधुर क्षणों की ओर
जो बाहें पसारे मेरा रास्ता तकती रहती है!
4. तुम्हारी आँखें नदी का ठहरा पानी है
मेरी हिचकोले खाती जीवन रूपी नाव को सहारा देती है
जो बीच मझदार फसी पड़ी है!
5. तुम्हारी आँखें बारिश के जुगनू है
काली बयार में, सहमी और लाचार खड़ी जो मैं
हाथ बढ़ा मुझे थाम लेती है!
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