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Friday, September 10, 2010

ज़िन्दगी!




1. भूख का टुकड़ा ले के
रगडती चली जा रही है
हाय, ज़िन्दगी बढ़ी चली जा रही है!

2. एक पुल लटका हुआ है
इधर झूठ क्षणभंगूर काया पर चमक रहा है
उधर सच दमकती मुस्कान लिए मेरे होठों पर सजा है!

3. ज़िन्दगी और क्या है?
मेरे आस पास में सजे रंग ही तो है!
बारी-बारी सभी रंग एक दूसरे पर हावी होते है
पर निष्कर्ष कोरा ही रहता है!

4. शब्दों का फेर है
हर काम में थोड़ी देर है
ज़िन्दगी फिर भी
अंधेर नहीं, सिर्फ सवेर है!

5. तुमसे ज़िन्दगी है
तुम ज़िन्दगी से नहीं
क्यूँ ना, तुम रोज़ नया बहाना ढुंढ़ो
मुस्कुराने का!

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6 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!

Anamikaghatak said...

pratyek pankti ati sundar

Tarang Sinha said...

It seems like a nice poem, Why you've numbered them?

Rachana said...

@Tarang : this poem is a collection of 5 short poems.

Anonymous said...

चिट्ठी दूसरी दुनिया जा बसे मीत को ..
by Sanjeev Gautam on Wednesday, September 7, 2011 at 7:14pm

चिलचिलाती धूप लू के थपेड़ों में सर्द एहसास..
बर्फ सी जमती रातों में तपिश..
अमावस में भी रौशनी थी तुम ..
तुम्हारा यूँ हमेशा के लिए चले जाना..
यादों में बस जाना ..
बाकि तो सब सह रहे है
हर सांस जीते मर रहे है..
बातें तो बहुत सी है तुम से कहने को..
लेकिन कहूँगा बस यही
केवल इतना ..
अब तुम जिस भी दुनियां में हो ..
अपना वादा निभाना ..
और किसी को यूँ बीच में
फिर रोता तडपता छोड़ के मत जाना ..
यूँ छोड़ के मत जाना..
a concept by ..sanjeev gautam creative copy writing desk

Unknown said...

awesum

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