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Sunday, September 5, 2010

रंग बिरंगी चूडिया!




हाथों में सजी है
रंग बिरंगी चूडिया
जोह रही है बाट
बीते पल और घडिया!

बचपन का खेल
गुड्डे और गुडियो का मेल
हसी के फव्वारे
चूडियो की खंकार बुलाये, रे!

जवानी का जोर
मन उड़े बिना डोर
खीचे प्रीत की फास
अब चूडिया ही बची आस!

दुल्हन बन
तुम संग चली
बाबुल की हवा
पिया के अंगना बही
खन-खन चूडिया
फिर बजने लगी!

जब पिया भये परदेस
और आवे ना कोई सन्देश
चूडिया की गूँज
लावे है नयनो में बूँद!

रंग बिरंगी चूडिया
मिटाए दिलो की है दूरियाँ!

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5 comments:

मनोज कुमार said...

यह कविता तरल संवेदनाओं के कारण आत्‍मीय लगती है|

दिगम्बर नासवा said...

कुछ कोमल भावनाओं का संगम है ये रचना ....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मन भावन कविता.

123 said...

wow... gud post.....well written and brief....nice subject and presentation...keep blogging and all the best.......

By the way:
hi.........i'm a 15 year old blogger.....currently taking part in the "My Demand" contest......
please read my post n support me by voting if u find it interesting....

My post link: http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=30629

Greetings,
Mohammed!

Vandana Sharma said...

kabhi khushi kabhi gammm lati yeh churiyan....

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