खतम कहाँ होती है पंक्तिया
जुडती, बढती चली आती है पंक्तिया
घटती फिर सिमटी चली जाती है पंक्तिया
गिर के फिर संभल जाती है पंक्तिया
ख़तम कहाँ होती है पंक्तिया
मुड़ती, बदलती जाती है पंक्तिया!
Khatam kahan hoti hai panktiya!
Khatam kahan hoti hai panktiya
Judti, badhti chali aati hai panktiya
Ghat ti fir simati chali jati hai panktiya
Gir ke fir sambhal jaati hai panktiya
Khatam kahan hoti hai panktiya
Mudati, badalti jaati hai panktiya!
2 comments:
अच्छा सोचती हो.. पर इसमें कुछ ऐसा लगा की शुरू हुआ भी नहीं और शुरू होते हे ख़तम हो गया ..! कुछ ऐसा की गूगली हो गया हो .. वैसे तुम्हारी कल्पना है.. उसका मैं सम्मान करता हूँ.
अच्छा कर रही हो.
thanx, Himanshu
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