गर्मी के मौसम में
जब आसमान तप कर
उपर से नीचे झांके
उससे उत्पतित उसमा की मार
नीचे चौंधिया दे सबकी आँखें!
सूनी गलिया, सूनी सड़के
अलसाये मन और पथराये तन
उमस की तड़प
सभी को खीच कर दे सन्न!
ठंडी की हलकी आस
करे नज़रबंद सबको घर के अन्दर
ऊँघे बैठे, सोये जागे
मन को कुछ भी नहीं भाए!
टिक-टिक करके
दोपहरी बीती जाए
हाय, सांझ से पहले
घर से ना निकला जाए!
Dopahari!
Garmi ke mausam mein
Jab aasman tap kar
uper se neeche jhanke
Usse utpatit usma ki maar
Neeche chaundhiya de sabki aankhein!
Suni galiya, suni sadke
Alsaye man aur patharaye tan
Umas ki tadap
Sabhi ko khich kar de sann!
Thandi ki halki aas
Kare nazarband sabko ghar ke andar
Unghe baithe, soye jaage
Man ko kuch bhi nahi bhaaye!
Tik-tik karke
Dopahari beeti jaaye
Hai, saanjh se pehle
Ghar se na nikla jaaye!
1 comments:
अगर इन्सान प्रेम मैं अँधा हो.. तो इतनी गर्मी मैं भी झक मारके निकलेगा, उसे धुप भी आइस क्रीम नज़र आयगी और मिलने नहीं तो कम से कम दूर से देखने जरूर जायेगा.
वैसे कविता अच्छी है..
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