मन की नदी गहराती जाती है
आँसूओ की लहरे जब सहला के जाती है
यादें ठंडी हवा का झोका बन फुसलाती है
हिल्लोरो की धुन क्यूँ इतना जलाती है
अतीत के पन्ने पत्थर बन पल-पल चुभते है
हौसला नदी की रेत बन फिसलता जाता है
सपनो की नाव सजाये,
नाविक, तू क्यूँ ना आये
तुझ बिन कुछ ना भाए
मन मेरा इत -उत डोला जाए
देख!
मुस्कान आँखों में भरी है
प्रणय गीत होंठो पर सजा है
धड़कनों का सुर भी नया-नया सा है
फिर, क्यूँ ना हम नदी पार चले!
Chalo, Nadi Paar Chalo!
Man ki nadi gehrati jati hai
Aansoo ki lehare jab sehala ke jati hai
Yeedein thandi hawa ka jhauka ban fuslati hai
Hilloro ki dun kyun itna jalati hai
Ateet ke panne pattar ban pal pal chubhate hai
Hausala nadi ki ret ban fisalta jata hai
Sapno ki naav sajaye,
Navik tu kyun na aaye
Tujh bin kuch na bhaye
Man mera et ut dola jaaye
Dekh!
Muskan aankho mein bhari hai
Pranay geet hoonton par saja hai
Dhadkano ka sur bhi naya-naya sa hai
Fir, kyun na hum nadi paar chale!
2 comments:
Tumhari poem padhkar kuch lines yaad aa gayi...
Shayad isi ko pura karenn..!
"उस पार उतारने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है तूफ़ान को भी आना है
समझे या ना समझे वोह अंदाज़े मोहब्बत के,
एक शक्स को आँखों से हाल-ए-दिल सुनना है
मासूम मोहब्बत का बस इतना ही फ़साना है
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना"
Good ... Keep writing more ... :)
:-) Thanks Himanshu,
Rachana
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