घरौंदा उजड़ने के बाद
बारिश के थमने के बाद
बूंदों के रिसने के बाद
चाह यही की लौट जाऊ
उस आशियाने को आज!
बनाया था मैंने जिसे
पल-पल रातें जाग
जिसमे समेटा था
मैंने अपना आज
चाह यही की लौट जाऊ
उस आशियाने को आज!
कली खिली जहाँ हर बाग़
खुशबू जहाँ बाँधी मैंने अपने हाथ
मिला था अपनों का साथ
शहद थी जब सारी बात
चाह यही की लौट जाऊ
उस आशियाने को आज!
कांप जाती हूँ अब भी
उस भयानक सपने को कर याद
जिसने उजाडा था मेरा संसार
हो गयी अमावस, खो गया अब चाँद
फिर भी, चाह यही की लौट जाऊ
उस आशियाने को आज!
4 comments:
Beautiful one! I really liked the imagery in this!
Nice one.
Awesome lyrics ... really i m impacted
Ur words made my vision hazy, n i mean it.
I am sure u have understood what i conveyed..
Very touching words...Liked it a lot.
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