"A bi-lingual platform to express free ideas, thoughts and opinions generated from an alert and thoughtful mind."

Friday, July 23, 2010

बदलाव!!




सुबह से रात तक
रात से सुबह तक
कुछ भी ना रहा कोरा,
वक़्त ने सब कुछ बदल दिया!

कल तक जो रो रहा
जाने, कौन सी बात पर आज हँस पड़ा
कुम्हार की मिटटी ने भी
चोला अपना बदल दिया!

बूंदों जैसी नन्ही कली
फूल बन आज ढल चली
तड़पती धूप भी आज
बिजली की तलवार से छली!

खेतों की कच्ची पगडंडियाँ आज
कारखानों की ऊंची दीवार बनी
खुला वातावरण लगा अब घिरने
सिकुड़ते जा रहे है झरने!

दिलो की दूरियों के ताले
समय की मार से लगे है सड़ने
दोस्ती की उगती झलक
बरसो की गहरी दुश्मनी में मिली!

बदलाव ही अच्छाई और बुराई
जो भर देती है हर खाई
सोचने से करने तक
करने से होने तक
बदलाव ही है अमिट सच्चाई!

Related Posts :



0 comments:

Post a Comment