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Thursday, October 21, 2010

नन्हा पत्ता!




कोने के उजड़े घर के बरामदे में
अकेला पेड़ अपनी आखिरी पत्ते को निहार रहा था
मंद-मंद मुस्कुरा रहा था
जैसे बीते यौवन को पुकार रहा था!

आंधी आई
उसे भी शरारत ही भाई
वेग बढ़ा पेड़ पर घिर आई
नन्हा पत्ता फिर भी पीछे ना हटा
हिम्मत कर, अपने स्थान पर ही डटा रहा!

बादलो ने देखा
आंधी की हुई दुर्दशा
दौड़ पड़े, टूट पड़े
धमाधम पानी के बुलबुले फूट पड़े
निडर पत्ता, सब सह गया
पानी को अमृत समझ कर पी गया!

बीती काली रात, लाई उजली सुबह साथ
सूरज का दमकता मुख सामने था
कोमल पत्ते को जीवन अभी मिला था
सोचने लगा की सपना था या कोई भरम

मुस्कुरा किया किरणों का स्वागत
नया दिन और एक नई शुरुआत
पेड़ पिता का ले आशीर्वाद
नन्हा पत्ता खिल उठा
आज फिर वो जी उठा!

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2 comments:

abhi said...

bahut khoobsurat kavita hai..

Vandana Sharma said...

Bahut hee badhiya rachnatamak, humein bhi iss pattey ki tarah mushkilon ka saamna karna chahiye

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