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Wednesday, October 20, 2010

एक दिन…!




तुम और मैं
खड़े मीलों पार
बीच है ना नाव और पतवार
अब कैसे कहे मन की बात
जानते है यह दोनों हमें है प्यार!

एक दिन…!

सच है, हमारे धर्म है अलग
फिर भी आँखों में है अपनी
प्यार की गहरी झलक
क्यूँ नाम तुम्हारा सुनके
चेहरा मेरा जाता चहक!

एक दिन….!

क्या वो दिन आएगा?
जब हम कर सकेंगे
एक दूसरे से वही बात
जब टूट जाएगी
बीच में खड़ी हर दीवार!

एक दिन….!

तुम तुम रहोगे
मैं मैं रहूंगी
समुन्दर पार
समेटे सपने सजे खुली आँख
बन जाएगी बिगडती सब बात!

एक दिन…!

जब तुम कह सकोगे मुझसे
की तुमसे है मुझे प्यार
बिना जिझक और डर
ऊचे पेड़ पर बनायेंगे
बसेरा अपना जहाँ खुशिया खड़ी द्वार!

एक दिन…शायद ऐसा होगा…हाँ, सब अच्चा होगा!

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4 comments:

Abhishek Agrawal said...

good as usual Rachana............

Tarang Sinha said...

A very nice poem.

AD said...

Beautiful !!!!!
Cravings of two souls deeply attached and united in feelings..but separated bcoz of some stupid barriers are very much on display..Made my heart pray for the unison of ur leadind characters...:)
Must say emotions run deep in u...
God bless u always..AMEN....

Aryan said...

Reallyy Nice ,,

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