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मुझे लड़ना है तुमसे
हाँ आज उलझना है तुमसे
कितनो की जाने ली है तुमने
कितने ही घरो को उजाडा है तुमने मौन खड़ी अब ना सहूंगी
आगे बढ़ तुमसे लडूंगी!
मानती हूँ, कमज़ोर नहीं मैं
ढृढ़ निश्चय के साथ
निरंतर बढ़ूंगी
आँखें मिला सामना करुँगी
यही खड़ी तुमसे लडूंगी!
तुम हो मौत के सौदागर
क्या मिला खून-खराबा फैला कर
क्या मिली शान्ति चिराग बुझा कर?
सवालो के दायरे में
अब ना घुटूंगी
ज्यादती अब ना सहूंगी
आगे बढ़ तुमसे लडूंगी!
Terroris |
2 comments:
लड़ना हीं नहीं मारना होगा , लडाई में जीतना होगा
यही तो चाहिये, आपके जज्बे को सलाम,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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