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Tuesday, July 5, 2011

अनोखा चित्र














विहंगम दृश्य है 
मीलों फैला कैनवास है
ना कोई कूची है
ना बनाने वाला चित्रकार है

आकाश ने नीला रंग भर दिया 
तरुनाई ने हरा भी जोड़ दिया
फूलो की रंग बिरंगी आभा भी
चित्र में है गहरी समाई
बरखा की बूंदों जब पास आई 
बिजली की चमकार भी डट कर गुर्राई 

पंछियो के कलरव ने किया इसको जीवंत 
देख कर हुई मैं मगन 
लगता है चित्र पूरा हो गया भाई!

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2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चित्र के साथ कविता भी मनोहर लगी ...

Kailash Sharma said...

चित्र और कविता दोनों ही बहुत सुन्दर..

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