विहंगम दृश्य है
मीलों फैला कैनवास है
ना कोई कूची है
ना बनाने वाला चित्रकार है
आकाश ने नीला रंग भर दिया
तरुनाई ने हरा भी जोड़ दिया
फूलो की रंग बिरंगी आभा भी
चित्र में है गहरी समाई
बरखा की बूंदों जब पास आई
बिजली की चमकार भी डट कर गुर्राई
पंछियो के कलरव ने किया इसको जीवंत
देख कर हुई मैं मगन
लगता है चित्र पूरा हो गया भाई!
2 comments:
चित्र के साथ कविता भी मनोहर लगी ...
चित्र और कविता दोनों ही बहुत सुन्दर..
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