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Sunday, January 2, 2011

लिखना चाहती हूँ!

लिखना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हूँ

बेड़ियो में बिधी,
स्वतन्त्रा की सांस लेना चाहती हूँ

सूख चुके नयनो में अपने
जल प्रवाह के तीर छोड़ना चाहती हूँ

रात की भुझी राख में
चिनकारी की गर्मी खोजना चाहती हूँ

आज, जो खो चुकी अपनी आवाज़ मैं
गीत पुराने गुनगुना चाहती हूँ

सूख चुकी स्याही मेरी,
कलम फिर भी घिसना चाहती हूँ

आज फिर, लिखना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हूँ!

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