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Saturday, November 20, 2010

भविष्य!




धुंधला-धुंधला सा
आड़ा-तिरछा
गूंगा-बहरा
सच्चा-झूठा
सोचता-समझता
मुझमे ही कही बंद है
मेरा भविष्य!

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3 comments:

मनोज कुमार said...

धुंधला-धुंधला सा
आड़ा-तिरछा
गूंगा-बहरा
ये हम सबका सच है।

अनुपमा पाठक said...

भविष्य की बात करती अच्छी रचना!

Kunwar Kusumesh said...

सुन्दर अभिव्यक्ति..

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