सोच सोच के ना भी सोचू
ऐसा कोई दिन नहीं
साथ छोड़ के मौन बैठें
क्या तुम वही और मैं भी वही?
चमकती लेखनी की नयी धार
मनचले शब्दों का भरपूर प्रहार
भावनाओं की बहती ब्यार
सच…सुहाने ही तो थे वो पल चार !
समय के भॅवर में रोते हसते
बूँद बूँद पर जीते मरते
हमने क्यों मुँह फेर लिया
जाने किसने किससे बैर लिया !
सोच सोच के ना भी सोचू
ऐसा कोई दिन नहीं
कुछ कहने का कुछ सुनने का
मौका यहीं है अभी सही !
3 comments:
👍👍👍
Beautiful poem..
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