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Tuesday, January 17, 2012

आसमान छूटने को है


जो चुभता है तुम्हे वो
मेरी बातों के बाण नहीं
बल्कि ना पूछे गए सवालो की टीस है

जो रुलाती है तुम्हे वो
मेरे आंसूओ की धार नहीं
बल्कि आने वाले कल की धुंधली परछाई है

जो सताती है तुम्हे वो
मेरे अनगिनत उलझे सवाल नहीं
बल्कि दम तोडती भावनाए है

जो भरमाता है तुम्हे वो
मेरा पागलपन नहीं
बल्कि तुम्हारी अपनी कमजोरी है

सिलवटे लेती ज़िन्दगी
कसमसाने लगी है
कहते थे जिसे अपना
आज वो आसमान
छूटने को है

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3 comments:

Kailash Sharma said...

सिलवटे लेती ज़िन्दगी
कसमसाने लगी है
कहते थे जिसे अपना
आज वो आसमान
छूटने को है

....वाह! बहुत संवेदनशील ओर भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

Saru Singhal said...

Very touchy and soulful poem...

सदा said...

बहुत ही बढिया

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