Friday, September 30, 2011
विश्वास
विश्वास की हलकी रौशनी
को साथ ले कर
चल निकली थी!
रास्ते अनजाने
बड़े लम्बे थे
थामे वही विश्वास
बढती चली
जान गई हूँ आज
की काफी है
एक जीवन ऐसे ही
बीताने के लिए!
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Monday, September 26, 2011
हम-1
हम मिले
साथ चले
चलते रहे
दूर तक
मीलों पार
खोने लगे
रास्ते अपने
मुड़ के देखा
सुकून था
रास्ता जाना पहचाना था
यह वही जा रहा था
जहाँ हमें जाना था!
हम
याद नहीं
कब
कैसे
कहाँ
मैं और तुम
बन गए हम
कहते रहे
सुनते गए
सोचे बिना
चलते रहे
जुड़ते चले
फलते बढे
लगता है ऐसे ही
उलझ गए मैं और तुम
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Wednesday, September 14, 2011
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी न्यारी है
सौत ‘अंग्रेजी’ के डंक से ग्रसित बेचारी है
राष्ट्रभाषा होते हुए भी
अपने ही घर में पराई है
गुज़र गए दिन जब
हिंदी महारानी थी
अंग्रेजी पड़ी उसके पाँव
हिंदी अभिमानी थी
बदला स्वरुप, बदली काय
हिंदी पर पड़ गई घनघोर काली छाया
अपने अस्तित्व को बचाती
हिंदी अपने ही आँगन सकुचाती है
हिंदी विकास चाहिए तो
मिलाना होगा हाथ
पैरो की बेडी नहीं
बनाओ हिंदी को सर का ताज
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Monday, September 12, 2011
बातें
खट्टी-मीठी
तीखी-रसीली
भूली-बिसरी
नयी-पुरानी
मनभावन-मतवाली
गुदगुदाती- टीस जगाती
कभी हसांती-कभी रुलाती
बातें ख़तम कहाँ होती है
एक पल में
मीलों पार पहुच जाती है
पुराना-नया सब सामने आ जाता है!
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Monday, September 5, 2011
ऊँचाई
समझ नहीं आता ऊँचाई का चक्कर
आखिर मिलना यही है मिटटी में जा कर
जन्म से ही सब ऊँचाई को तरसे
ऊँचाई
कितना लुभाती है
बाद में बहुत सताती है
कितनी ऊँचाई ?
जहाँ तुम दूसरों को देख ना सको
जहाँ तुम खुद को पहचान ना सको
जहाँ तुम छोटी-छोटी खुशियों को तरसो
जहाँ तुम संतुष्ठी को तुम खोजो
मुझे नहीं ऊंचा उठना उतना
जहाँ टूटने लगे संजोया सपना
छूटने लगे हर अपना
ऐसी ऊँचाई व्यर्थ है ना?
Saturday, September 3, 2011
मेरी अनुभूति
वही दिन है
वही समय है
शायद वही घडी है
ना वही तुम हो
ना वही मैं हूँ
अनुभूति बदल रही है
मेरे सोचने का अंदाज़
तुम्हारे होने का आभास
इस अनोखी जीवन लीला ने
सैकड़ो मोड़ बदल दिए
कुछ नई राहें रास्ते खोल दिए
शायद यही सही शुरुआत है
एक नए जीवन की!
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