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Tuesday, May 31, 2011

आँगन की मिट्टी




तुम वही हो ना…
जो बचपन से लेकर अब तक
मेरे आस पास
महका करती हो!

याद है मुझे
आँगन में खेलते हुए
कई बार तुम्हे मुहँ में भरा है
लोट लोट कर तुम्हारी खुशबू
खुद में समेट ली है मैंने
हवा क एक झौके से
तुम पल भर में उड़ जाती थी!

आज भी तुम साथ हो
क्यूँकि, तुम बहुत खास हो
पैरो में नहीं
माथे का चन्दन हो
तुम वही हो ना!

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