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Saturday, February 12, 2011

सूरज!



स्याह रंग रात का
गहरा रहा है
भरता जा रहा है
बीज पूर्णता के
अंगड़ाता
कसमसाता
हौले से गुदगुदा रहा है
उसकी कोख में
एक आईना उभर आ रहा है
उसकी भीनी रौशनी में
नया जनम खिल रहा है!

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