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Tuesday, February 22, 2011

आंसू




बूंदों का वेग
सर चढ़ चला
साहिलो पार
उफनता मिला
दो नैनों के रास्ते
निर्मोही, बस बरस पड़ा!

Saturday, February 12, 2011

सूरज!



स्याह रंग रात का
गहरा रहा है
भरता जा रहा है
बीज पूर्णता के
अंगड़ाता
कसमसाता
हौले से गुदगुदा रहा है
उसकी कोख में
एक आईना उभर आ रहा है
उसकी भीनी रौशनी में
नया जनम खिल रहा है!

Wednesday, February 9, 2011

मन अकेला!




मन अकेला
मुरझा गया

अधखिला यौवन
समय से पहले ही सिमट गया

टीस सहता रहा
मोमबती की बाती समान जलता गया

परछाई बन बहुत दूर तक चला
शायद खुद में ही खोता गया

अकेला मन
हर रोज़ मरता गया!