
भूल गई थी
तुम्हारी भी एक दुनिया है!
तुम्हारा सूनापन
मेरा अकेलापन
तुम्हारे सूखे होठ
मेरी खिलखिलाती हँसी
तुम्हारे ठहराव
मेरे अन्तरंग भाव
तुम्हारे घाव की टीस
मैं बैठी थी आँखें मीच
जब हम मिले
फूल बहारो में खिले
मिट गए थे सभी फासले
पर भूल गई थी की
तुम्हारी भी एक दुनिया है!
तुम्हारी सीमाएं
तुम्हारी परिस्तिथियाँ
तुम्हारी ऊचाइयाँ
तुम्हारी गहराइया
तुम्हारी सच्चाईया
तुम्हारे नकाब
मुझसे तो अलग है ना!
