तुम्हे याद है,
ख़ामोशी मुझे कितनी खलती थी
जिसकी आहट से ही मैं मचल उठती थी
अब देखो
कमबख्त बड़ी तस्सली से
बिखरी पड़ी है
मेरे जीवन में
अधिकार जमा लिया है इसने
मेरी सुबहो पर
ढलती शामो पर
जबसे तुम गए हो ना
हसी भी पास फटकती नहीं मेरे
अगर भूल से नजदीक आ भी गई तो
ये ज़ालिम ख़ामोशी
डंक मार कर उसको
भगा देगी
तंग आ गई हू इससे
जब तुम्हे जाना ही था तो
इसको ले क्यूँ नहीं गए साथ?
खुश तो रहती मैं
ज़िन्दगी तो जी लेती मैं
3 comments:
वक़्त वक़्त की बात है। मर्मस्पर्शी कविता!
Very painful...Silence after someone leaves you is deadly...
ख़ामोशी और दर्द ....
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