बहुत दिनों से
ढूंढ़ रही थी जिसे
जो खो गया था
यही ही कही
जिसके जाने से
बेचैन रहता था मन
नींद हो गई थी
अनजान,ओझल और ग़ुम
शब्दों को पिरोया नहीं
भावो को संजोया ना सही
कल्पना के समुंदर में
गोता लगाया ही नहीं
बहुत दिनों के बाद
मौका मिला फिर एक बार
लफ़्ज़ों के मायने फिर खोज आये
कुछ कहते और कुछ सुनते जाए
2 comments:
शब्द और उसके भाव ...मन के भीतर ही रहते हैं
और जब बाहर आते हैं तो कविता बन जाती हैं ...
रचनाएं भाव-प्रधान आकर्षित करती हैं.
- सुलभ
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